फेसबुक पर
रोज नए-नए चेहरों के साथ प्रकट होते हो तुम
कल
तुम्हारे जिस चेहरे को ‘लाइक’ किया था मैंने
आज
नए चेहरे पर ताजा टिप्पणी की दरकार है तुम्हें
कितना संभव हो
रोज बदल जाने वाले तुम्हारे मुखौटों की तरह
तुम्हारा प्रोफाइल भी बनावटी है।
फेसबुक पर
बड़ी आसानी से लंबी हो जाती है
चाहे अनचाहे दोस्त की फेहरिस्त
जैसे-जैसे संख्या में होता है इजाफा
वैसे-वैसे
बढ़ता प्रतीत होता है अपने असर का दायरा
कभी-कभार
इस दायरे की चादर में उभर आएँ जो
अनचाही सलवटें
तो एक क्लिक में किया जा सकता है अनफ्रेंड
यहाँ
सबके लिए भेजी जा सकती है फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट
सबको देखते हुए भी
किया जा सकता है अनदेखा
फेसबुक पर
सबको देखा जा सकता है
तथागत की तरह निर्लिप्त
या देवताओं की तरह मंथन की मुद्रा में
मौसम के अनुरूप चल रही होती है अविराम बहसें
बधाई और शुभकामनाओं की आवाजाही
आम बात है फेसबुक पर।
रोज-रोज
बदल जाने वाले मुखौटों में से
किसी एक को एक्सेप्ट कर लेने के वास्ते /
कहीं बार याद रख लेने की कोशिशों के बीच
हर बार भूलता रहा तुम्हारा जन्मदिवस
फेसबुक ने ये झंझट तो खत्म ही कर दिया
कि जिनका जन्मदिवस होता है
अपने-आप उभर आता है
उनका नाम और प्रोफाइल फोटो
चटक रंगों के साथ मेरी फेसबुक के कोने पर।
चेहरों की किताब के पृष्ठों पर
बिखरी पड़ी रहती है हँसी
असली या बनावटी-जैसी भी हो
रिश्तों का रोज नया समुच्च बनता है यहाँ
असली या बनावटी-जैसा भी हो
संवेदनाओं से भरी होती है लोगों की वॉल
असली या बनावटी-जैसी भी हो
लोगों की टिप्पणियाँ देती हैं हौसलों को आसमान
असली या बनावटी-जैसा भी हो
‘फेसबुक’ भी रचती है सपनों का संसार
असली या बनावटी-जैसा भी हो
कौन कहता है सायबर संसार में
‘वर्चुअल’ दुनिया नहीं होती ‘रियल’।